Fascination About baglamukhi sadhna
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१. रिपु-रसा = शत्रु की जिह्वा कीर्ति, श्री एवं विजय प्रदायक
स्तम्भन-बाणाय धीमहि कनिष्ठाभ्यां नमः
हस्तैर्मुद्गगर – पाश -वज्र-रसनां संविभ्रतीं भूषणै –
नमः पादयोः, मम परस्य च मनोभिलषितेष्ट-कार्य-सिद्धये पाठे विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे।
इति ते कथितं देवि! कवचं परमाद्भुतम्। यस्य स्मरण-मात्रेण, सर्व-स्तम्भो भवेत् क्षणात् ।।१
मां बगलामुखी यंत्र चमत्कारी सफलता तथा सभी प्रकार की उन्नति के लिए सर्वश्रेष्ठ माना गया है। कहते हैं इस यंत्र में इतनी क्षमता है कि यह भयंकर तूफान से भी टक्कर लेने में समर्थ है। माहात्म्य- सतयुग में एक समय भीषण तूफान उठा। इसके परिणामों से चिंतित हो भगवान विष्णु ने तप करने की ठानी। उन्होंने सौराष्ट्र प्रदेश में हरिद्रा नामक सरोवर के किनारे कठोर तप किया। इसी तप के फलस्वरूप सरोवर में से भगवती बगलामुखी का अवतरण हुआ। हरिद्रा यानी हल्दी होता है। अत: माँ बगलामुखी के वस्त्र here एवं पूजन सामग्री सभी पीले रंग के होते हैं। बगलामुखी मंत्र के जप के लिए भी हल्दी की माला का प्रयोग होता है।
बालां सत्स्रेक-चञ्चलां मधु-मदां रक्तां जटा-जूटिनीम् ।। शत्रु-स्तम्भन-कारिणीं शशि-मुखीं पीताम्बरोद् भासिनीम् ।
तन्नः बगला प्रचोदयात् करतल-कर-पृष्ठाभ्यां नमः अङ्ग-न्यास
गौर्हि देवानां मनोता तस्यां हि तेषां मनांसि ओतानि
स्वाहा’ मे सर्वदा पातु, सर्वत्र सर्व-सन्धिषु ।।३
जिह्वा-वर्ण-द्वयं पातु, गुल्फौ मे ‘ कीलये ‘ति च । पादोर्ध्वं सर्वदा पातु, ‘बुद्धि’पाद-तले मम ।।१०
सर्व-मन्त्र-मयीं देवीं, सर्वाकर्षण-कारिणीम् । सर्व- विद्या-भक्षिणीं च, भजेऽहं विधि-पूर्वकम् ॥
प्रसन्नां सुस्मितां क्लिन्नां, सु-पीतां प्रमदोत्तमाम् । सु-भक्त-दुःख-हरणे, दयार्द्रांं दीन-वत्सलाम् ।